Bharat Vishal

Monday, November 1, 2010

विचारों की बंद गली में नहीं रहते मुसलमान

विचारों की बंद गली में नहीं रहते मुसलमान


- जगदीश्वर चतुर्वेदी

कारपोरेट मीडिया और अमेरिकी साम्राज्यवाद के इशारे पर इस्लाम और मुसलमान को जानने की कोशिश करने वालों को इनके बारे में अनेक किस्म के मिथों से गुजरना पड़ेगा। मुसलमान और इस्लाम के बारे में आमतौर पर इन दिनों हम जिन बातों से दो-चार हो रहे हैं वे अमेरिका के संस्कृति उद्योग के कारखाने में तैयार की गई हैं।

अमेरिकी संस्कृति उद्योग ने मिथ बनाया है इस्लाम का अर्थ है अलकायदा,तालिबान या ऐसा ही कोई आतंकी खूंखार संगठन। दूसरा मिथ बनाया है मुसलमान का । इसका अर्थ है बम फोड़ने वाला, अविश्वनीय,संदेहास्पद, हिंसक,हत्यारा, संवेदनहीन,पागल,देशद्रोही ,हिन्दू विरोधी, ईसाई विरोधी, आधुनिकताविरोधी ,पांच वक्त नमाज पढ़ने वाला आदि । तीसरा मिथ बनाया है इस्लाम में विचारों को लेकर मतभेद नहीं हैं। मुसलमान भावुक धार्मिक होते हैं। ज्ञान-विज्ञान, तर्कशास्त्र, बुद्धिवाद आदि से इस्लाम और मुसलमान को नफ़रत है। मुसलमानों के बीच में एक खास किस्म का ड्रेस कोड होता है। बढ़ी हुई दाढ़ी,लुंगी,पाजामा,कुर्ता,बुर्का आदि।

कहने का अर्थ यह है कि अमेरिकी संस्कृति उद्योग के कारखाने से निकले इन विचारों और मिथों के आधार पर मुसलमान और इस्लाम को आप सही रूप में नहीं जान सकते। इन मिथों को नष्ट करके ही इस्लाम और मुसलमान को सही रूप में जान और समझ सकते हैं। कारपोरेट मीडिया और अमेरिकी संस्कृति उद्योग द्वारा निर्मित मिथों के परे जाकर मुसलमान और इस्लाम को सहानुभूति और मित्रता के आधार पर देखने की जरूरत है।

अमेरिकी साम्राज्यवाद ने विभिन्न तरकीबों के जरिए विगत 60-70 सालों में सारी दुनिया में मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ जहरीला प्रचार करने के लिए दो स्तरों पर काम किया है। पहला है प्रचार या प्रौपेगैण्डा का स्तर। दूसरा , विभिन्न देशों में मुसलमानों में ऐसे संगठनों के निर्माण में मदद की है जिनका इस्लामिक परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं है। इस काम में अनेक इस्लामिक देशों खासकर सऊदी अरब के सामंतों के जरिए रसद सप्लाई करने का काम किया गया है,इसके अलावा अनेक संगठनों को सीधे वाशिंगटन से भी पैसा दिया जा रहा है। आज भी तालिबान और दूसरे संगठनों को सीआईए ,पेंटागन आदि एजेंसियां विभिन्न कारपोरेट कंपनियों के जरिए मदद पहुँचा रही हैं।

कहने का तात्पर्य यह है कि अमेरिकी साम्राज्यवाद और संस्कृति उद्योग की इस्लाम और मुसलमान के विकृतिकरण में भूमिका की अनदेखी करके इस्लाम पर कोई भी बात नहीं की जा सकती। अमेरिकापंथी और यहूदीवादी कलमघिस्सुओं के द्वारा निर्मित मिथों को नष्ट करके ही इस्लाम और मुसलमान के बारे में सही समझ बनायी जा सकती है। इस संबंध में इस्लामिक देशों की देशज दार्शनिक ,धार्मिक परंपराओं और आचारशास्त्र का भी ख्याल रखना होगा।

संस्कृति उद्योग ने मिथ बनाया है कि इस्लाम में दार्शनिक मतभेद नहीं हैं। यह बात बुनियादी तौर पर गलत है। इस्लाम दर्शन को लेकर इस्लामिक विद्वानों में गंभीर मतभेद हैं। समस्या यह यह है कि हम इस्लाम और मुसलमान को नक्ल के आधार पर देखते हैं या अक्ल के आधार पर देखते हैं ? अमेरिका के संस्कृति उद्योग ने नक्ल यानी शब्द या धर्मग्रंथ के आधार पर इस्लाम और मुसलमान को देखने पर जोर दिया है और इसके लिए उसने इस्लाम में पहले से चली आ रही नक्लपंथी परंपराओं का दुरूपयोग किया है,उन्हें विकृत बनाया है। इस्लाम में अक्ल के आधार पर यानी बुद्धि और युक्ति के आधार पर देखने वालों की लंबी परंपरा रही है। इसे सुविधा के लिए इस्लाम की भौतिकवादी परंपरा भी कह सकते हैं।

राहुल सांकृत्यायन ने ‘दर्शन-दिग्दर्शन’ नामक ग्रंथ में कुरान के बारे में लिखा है कि ‘‘ कुरान की भाषा सीधी-सादी थी। किसी बात के कहने का उसका तरीका वही था,जिसे कि हर एक बद्दू अनपढ़ समझ सकता था।इसमें शक नहीं उसमें कितनी ही जगह तुक,अनुप्रास जैसे काव्य के शब्दालंकारों का ही नहीं बल्कि उपमा आदि का भी प्रयोग हुआ है, किन्तु वे प्रयोग भी उतनी ही मात्रा में हैं ,जिसे कि साधारण अरबी भाषाभाषी अनपढ़ व्यक्ति समझ सकते हैं। ’’ यानी कुरान की जनप्रियता का कारण है उसका साधारणजन की भाषा में लिखा होना।

पैगम्बर साहब ने जैसा सोचा और लिखा था उसी दिशा में इस्लामिक दर्शन का विकास नहीं हुआ बल्कि इसकी धारणाओं और मान्यताओं में दुनिया के संपर्क और संचार के कारण अनेक बुनियादी बदलाव भी आए हैं। राहुलजी ने लिखा है ‘‘ पैगंबर के जीते-जी कुरान और पैगंबर की बात हर एक प्रश्न के हल करने के लिए काफी थी। पैगंबर के देहान्त (622ई.) के बाद कुरान और पैगंबर का आचार (सुन्नत या सदाचार) प्रमाण माना जाने लगा। यद्यपि सभी हदीसों (पैगंबर-वाक्यों,स्मृतियो) के संग्रह करने की कोशिश शुरू हुई थी,तो भी पैगंबर की मृत्यु के बाद एक सदी बीतते-बीतते अक्ल (बुद्धि) ने दखल देना शुरू कर किया, और अक्ल(बुद्धि ,युक्ति) और नक्ल ( शब्द,धर्मग्रंथ) का सवाल उठने लगा। हमारे यहां के मीमांसकों की भांति इस्लामिक मीमांसकों -फिक़ावाले फ़क़ीहों- का भी इस पर जोर था,कि कुरान स्वतः प्रमाण है,उसके बाद पैगंबर-वाक्य तथा सदाचार प्रमाण होते हैं।’’

फ़िक़ा के चार मशहूर आचार्य हुए हैं। इमाम अबू हनीफा,इमाम मालिक,इमाम शाफ़ई और इमाम अहमद इब्न -हंबल। हनफ़ी और शाफ़ई दोनों मतों में क़यास या दृष्टान्त के द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुँचने पर जोर दिया गया। इमाम अहमद इब्न हंबल ने हंबलिया सम्प्रदाय फ़िक़ा की नींव ड़ाली और कहा कि ईश्वर साकार है।

जबकि इमाम शाफ़ई (767-820ई.) ने शाफ़ई नामक फ़िक़ा सम्प्रदाय की नींव ड़ाली और सुन्नत या सदाचार पर ज्यादा जोर दिया। इसके अलावा इमाम अबू-हनीफ़ा ( 767ई.) कूफा (मेसोपोतामिया) के रहने वाले थे ,इनके अनुयायियों को हनफ़ी कहा जाता है। इनका भारत में बहुत जोर है। जबकि इमाम मालिक (715-95ई.) मदीना निवासी थे। इनके अनुयायी मालिकी कहे जाते हैं। स्पेन और मराकों के मुसलमान पहले सारे मालिकी थे। इमाम मालिक ने पैगंबर-वचन(हदीस) को धर्मनिर्णय में बहुत जोर के साथ इस्तेमाल किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि विद्वानों ने हदीसों को जमा करना शुरू कर दिया, और हदीसवालों (अहले-हदीस) का एक प्रभावशाली समुदाय बन गया।

इस्लाम में मतभेदों यानी फित्नों की लंबी परंपरा है। सैंकड़ों सालों से इस्लाम में दार्शनिक वाद-विवाद चल रहा है। वे विचारों की बंद गली में नहीं रहते। वहां पर दुनिया के विचारों की रोशनी दाखिल हुई है। साथ ही इस्लाम ने दुनिया के अनेक देशों की संस्कृति और सभ्यता को प्रभावित किया है। अन्य देशों की संस्कृति और सभ्यता से काफी कुछ ग्रहण किया है।

अमेरिकी संस्कृति उद्योग का मानना है कि इस्लाम इकसार धर्म है । यह धारणा बुनियादी तौर पर गलत है। राहुलजी के अनुसार इस्लाम में दार्शनिक स्तर पर मतभेद रखने वाले चार बड़े सम्प्रदाय हैं। ये हैं, 1.हलूल - जिसकी नींव इब्न-सबा (सातवीं सदी) ने रखी थी। इब्न-सबा यहूदी धर्म त्यागकर मुसलमान बना था। वह हजरत अली (पैगंबर के दामाद) में भारी श्रद्धा रखता था। इसने हलूल (अर्थात जीव अल्लाह में समा जाता है) का सिद्धांत निकाला था। इब्न-सबा के बाद सीआ और दूसरे सम्प्रदाय पैदा हुए ,यह पुराना सीआ सम्प्रदाय है, इनमें उस वक्त ज्यादातर मतभेद कुरान और पैगंबर-सन्तान के प्रति श्रद्धा और अश्रद्धा पर निर्भर थे। सीआ लोगों का कहना था कि पैगंबर के उत्तराधिकारी होने का हक उनकी पुत्री फातिमा और अली की सन्तान को है। कालान्तर में सन् 1499-1736 के बीच में ईरान में सफावी वंश के शासन के दौरान सीआ मत को राज-धर्म घोषित कर दिया गया। इन लोगों ने मोतज़ला और सूफियों से अनेक बातें ग्रहण कीं।

इस्लाम धर्म में दूसरा बड़ा नाम है अबू-यूनस् ईरानी (अजमी) का। यह पैगंबर के साथियों (सहाबा) में से था। इसने यह सिद्धांत निकाला कि जीव काम करने में स्वतंत्र है,यदि काम करने में स्वतंत्र न हो ,तो उसे दण्ड नहीं मिलना चाहिए।

तीसरा नाम है जहम बिन् -सफ़वान का। उनका कहना था अल्लाह सभी गुणों या विशेषणों से रहित है।यदि उसमें गुण माने जाएंगे तो उसके साथ दूसरी वस्तुओं का अस्तित्व मानना पड़ेगा। इनके विचार कुछ मामलों में शंकराचार्य से मिलते -जुलते हैं। इस्लाम में चौथा मतवाद अन्तस्तमवाद (बातिनी) ईरानियों (अजमियों) का था। इनके अनुसार कुरान में जो कुछ कहा गया है उसके दो अर्थ दो प्रकार के होते हैं- एक है बाहरी (जाहिरी) ,दूसरा है बातिनी (आन्तरिक या अन्तस्तम)। इस सिद्धान्त के अनुसार कुरान के हर वाक्य का अर्थ उसके शब्द से भिन्न किया जा सकता है, तथा इस प्रकार सारी इस्लामिक परंपरा को ही उलटा जा सकता है। इस सिद्धांत के मानने वाले जिन्दीक़ कहे जाते हैं। जिनके ही तालीमिया(शिक्षार्थी) ,मुलहिद् ,बातिनी,इस्माइली आदि भिन्न-भिन्न नाम हैं।आगाखानी मुसलमान इसी मत के अनुयायी हैं।

निष्पक्ष विचारों के धनी जगदीश्वर चतुर्वेदी से साभार


http://jagadishwarchaturvedi.blogspot.com/2010/10/blog-post_31.html



Friday, October 29, 2010

तेज़ क़दम चलें, कैंसर से बचें

तेज़ क़दम चलें, कैंसर से बचें


भारत विशाल

ब्रिटेन के वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि लोग तेज़ चलने की आदत डाल लें तो स्तन कैंसर और आँत के कैंसर के मामलों में भारी कमी आ सकती है.

वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फ़ंड(डब्ल्यूसीआरएफ़) के वैज्ञानिकों का कहना है कि कोई ऐसा व्यायाम जिससे कि दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हों, कैंसर से बचाव की दृष्टि से महत्वपूर्ण है.
शारीरिक व्यायाम से मोटापे का ख़तरा भी कम हो जाता है. उल्लेखनीय है कि मोटापे से कैंसर का ख़तरा बढ़ता है.
डब्ल्यूसीआरएफ़ की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि व्यायाम लगातार लंबे समय तक किया जाए, या छोटे-छोटे अंतराल में किया जाए, दोनों समान रूप से उपयोगी होते हैं.
वैज्ञानिकों ने तेज़ क़दम से टहलने के अलावा साइकलिंग, तैराकी, नृत्य आदि को भी कैंसर से बचाव में उपयोगी गतिविधियों में शामिल किया है.
अध्ययन की रिपोर्ट के महत्व को ब्रिटेन के परिदृश्य में देखते हुए डब्ल्यूसीआरएफ़ के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. रैचल थॉम्पसन कहते हैं, "इस बात के ठोस सबूत मिल चुके हैं कि सक्रिय शारीरिक गतिविधियाँ से कैंसर से बचाव के लिए महत्वपूर्ण हैं. ऐसी गतिविधियों को थोड़ा सा बढ़ा कर भी हर साल ब्रिटेन में कैंसर के मामलों में हज़ारों की कमी लाई जा सकती है."
उन्होंने कहा, "नए अध्ययन से ये भी साबित होता है कि स्वास्थ्य संबंधी फ़ायदों के लिए रोज़ व्यायामशाला जाने की कोई ज़रूरत नहीं है. दिनचर्या में थोड़ा सा सुधार करने मात्र से ही कैंसर के ख़िलाफ़ बचाव हो सकता है. यहाँ तक कि तेज़ क़दम से टहलने मात्र से कैंसर का ख़तरा कम हो सकता है."
डॉ. थॉम्पसन ने पैदल चलने को शौक के रूप में अपनाने की सलाह दी है.
कैंसर रिसर्च यूके नामक एक अन्य ब्रितानी संस्था ने भी डब्ल्यूसीआरएफ़ के अध्ययन परिणामों को सही ठहराते हुए कहा है कि नियमित रूप से सामान्य व्यायाम करने वाले लोगों में स्तन और आँत के कैंसरों समेत कई तरह के कैंसर के मामले अपेक्षाकृत कम देखे जाते हैं.

Thursday, October 28, 2010

गडकरी की टीम में मरे हुए नेता भी!

नई दिल्ली । भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा महीनों चले विचार-विमर्श के बाद टीम घोषित की गई है लेकिन इसमें उन्होंने कई गंभीर गल्तियां भी की हैं। सूची में एक मृत नेता को भी स्थान दिया गया है। इससे लगता है कि भाजपा अध्यक्ष तथा उनके सलाहकारों को ठीक तरह से अपने नेताओं के बारे में भी जानकारी नहीं है।
भाजपा की नई सूची देखने से पता चलता है कि इसमें तो एक महिला का लिंग परिवर्तन भी कर दिया गया है। यही नहीं राष्ट्रीय कार्यकारिणी की विशेष आमंत्रितों को सूची में बलदेव प्रकाश टंडन को शामिल किया गया है, जो इस दुनिया से कूच कर गये हैं। कुंवारी से श्रीमती बनाई गई सूची में सरोज पांडे, आरती मेहरा और रंजना शाही जैसी जानी-मानी महिला नेता शामिल हैं। इसी तरह कई कुंवारी महिला नेताओं को श्रीमती बना दिया गया है,साध्वी निरंजना ज्योति के नाम के आगे श्री लगाकर उन्हें पुरुषों  की श्रेणी में रखा गया है। इस संबंध में कांग्रेस के एक महासचिव का कहना है कि भाजपा को जब अपने नेताओं के बारे में ही नहीं पता तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह आम जनता का कितना ध्यान रख सकती है।

Tuesday, October 26, 2010

ऑक्टोपस पॉल की मौत


दक्षिण अफ़्रीका में हुए फ़ुटबॉल विश्व कप में सबसे लोकप्रिय रहने वाले लोगों या चीज़ों का ज़िक्र करें तो इसमें शकीरा, वुवुज़ेला और ऑक्टोपस पॉल का नाम ज़रूर आएगा.
फ़ाइनल समेत कई मैचों के विजेता की सही भविष्यवाणी करने वाले पॉल ऑक्टोपस की जर्मनी में मौत हो गई है. जर्मनी में ओबरहॉसन समुद्र जीव केंद्र ने कहा है कि पॉल की मौत उनके अक्वेरियम में प्राकृतिक कारणों से हुई है.
पॉल का जलवा फ़ुटबॉल विश्व कप के दौरान किसी स्टार से कम नहीं था. स्पेन और हॉलैंड के बीच फ़ाइनल मैच से पहले पॉल ने अपने अक्वेरियम में स्पेन का झंडा चुनकर ये भविष्यवाणी की थी कि मैच स्पेन जीतेगा.
ये बात सही भी साबित हुई. इसके बाद तो सारी दुनिया में पॉल मानो हीरो बन गया, ख़ासकर विश्व कप विजेता स्पेन में.
जर्मनी के सारे मैचों की भी पॉल ने सही भविष्यवाणी की थी जिसमें सेमीफ़ाइनल में स्पेन के हाथों उसकी हार भी शामिल थी.
पॉल का जलवा
स्पेन के शहर मैड्रिड के चिड़ियाघर ने तो पॉल को अपने यहां रखने की इच्छा जताई थी लेकिन जर्मनी के ओबरहॉसन समुद्र जीव केंद्र ने उस निवेदन को ठुकरा दिया था.
पॉल ऑक्टोपस के बारे में बताया जाता है कि उसकी पैदाइश दक्षिणी इंग्लैंड के एक मछलीघर में हुई थी और बाद में उसे जर्मनी के समुद्री जीव केंद्र को बेच दिया गया.
दक्षिण अफ़्रीका फ़ुटबॉल विश्व कप के बाद इंग्लैंड ने पॉल ऑक्टोपस को अपने ख़ास अभियान के लिए चुना था. दरअसल इंग्लैंड 2018 के फुटबॉल विश्व कप के लिए अपना दावा पेश कर रहा है जिसके लिए ऑक्टोपस को ब्रांड एम्बेसेडर बनाने का फ़ैसला किया गया था.
इंग्लैंड ने एक वीडियो भी शूट किया था जिसमें ऑक्टोपस को अपने अक्वेरियम में इस तरह दिखाया गया था कि वो लाल रंग की एक पट्टी को पकड़ता है जिस पर लिखा हुआ है - इंग्लैंड-2018.
पॉल ऑक्टोपस के आधिकारिक फोटोग्राफ़र रोलैंड वीकरोच बताते हैं कि शुरू में तो सिर्फ़ दो फोटोग्राफ़रों और एक टेलीविज़न टीम ने ही पॉल की तस्वीरें लेना शुरू की थीं लेकिन विश्व की दूसरी गेम के बाद पॉल ऑक्टोपस की लोकप्रियता बढ़ने लगी.

Monday, October 25, 2010

भारत प्रभुत्वशाली शक्ति होगा : रिपोर्ट

वाशिंगटन। भारत की सामरिक स्थिति और रण कौशल आने वाले २५ वर्षो में हिंदमहासागर क्षेत्र में उसे दक्षिण एशिया और प. एशिया एक प्रभुत्वशाली शक्ति बना देगा। अमेरिका की ज्वाइंट फोर्सेज कमांड ने उभरती प्रौद्योगिकी और भौगोलिक, राजनीतिक स्थितियों पर जारी अपनी हालिया रिपोर्ट में यह बात कही है और लिखा है कि भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा क्योंकि अमेरिका क्षेत्रीय और यहां तक कि वैश्विक शक्ति के रूप में भारत को प्रोत्साहित कर रहा है। यहां जारी ज्वांइट आपरेटिंग एनवायरमेंट (जेओई) २०१० रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य के अंतरराष्ट्रीय माहौल में भारत की विशेष भूमिका होगी। अमेरिका की भविष्य की सामरिक गणनाओं में कुछ देश विश्व में प्रमुखता से उभर सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की सेना वर्षों में अत्यधिक मजबूत होगी। हिन्द महासागर में उसकी सामरिक स्थिति और उसके रणकौशल की वजह से भारत दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया में एक प्रभुत्वशाली शक्ति बन जाएगा। पेंटागन की रिपोर्ट में कहा गया है कि आगामी २५ वर्ष में देशों के बीच शक्ति संतुलन की स्थिति बदल जाएगी क्योंकि कुछ देश अमेरिका की अपेक्षा तेजी से आगे बढ़ रहे हैं जबकि बहुत से अमेरिका से कमजोर हो रहे हैं।
यह उल्लेख करते हुए कि आगामी दो दशकों में भारत संपाि के मामले में चौगुनी से अधिक तरक्की कर सकता है किंतु २०३० के दशक तक उसकी ज्यादातर आबादी के गरीबी में रहने की संभावना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन जैसे देशों में इससे अमीर तथा गरीब के बीच तनाव बढ़ेगा। रिपोर्ट में कहा गया कि धार्मिक विभाजन के साथ ही इस तरह के तनाव से उसकी आर्थिक वृद्धि और राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होती रहेगी। इसमें कहा गया कि हालांकि सोवियत संघ के पतन के बाद अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर अत्यधिक महत्वपूर्ण एकल घटना के रूप में चीन का उभार दिखता है किंतु यह एकमात्र कहानी नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार रूस और भारत दोनों के धनी बनने की संभावना है। रूस की शक्ति हालांकि कमजोर हो रही है। उसकी अर्थव्यवस्था सिर्फ हाइड्रो-कार्बन आधारित है और उसके पास क्षीण हो रहे आधारभूत ढांचे को दुर्स्ति करने के लिए गंभीर निवेश का अभाव है। इसमें भारत-पाक के बीच परमाणु युद्ध की भी संभावना व्यक्त की गई है और कहा गया है।

Sunday, October 24, 2010

डेंगू एक खतरनाक बुखार

पूरे विश्र्व में हर साल ५ से १० करोड़ मरीज डेंगू बुखार से प्रभावित होते हैं। इस बुखार को हड्डी तोड़ बुखार नाम भी दिया गया है। अगर इसका सही उपचार नहीं हुआ तो यह बुखार (१) डेंगू हेमोरेजिक फीवर, (२) डेंगू शॉक सिंड्रोम में बदल जाता है, जिससे मरीज की जान भी जा सकती है। यह एक वायरल बुखार है, जो ४ प्रकार के डेंगू वायरस (डी-१, डी-२, डी-३, डी-४) से होता है। यह वायरस दिन में काटने वाले दो प्रकार के मच्छरों से फैलता है।
ये मच्छर एडिज इजिप्टी तथा एडिज एल्बोपेक्टस के नाम से जाने जाते हैं। यह बुखार सिर्फ मच्छरों से फैलता है। मरीज दूसरे स्वस्थ आदमी को यह बीमारी नहीं देता है। यह मच्छर साफ, इकट्ठे पानी में पनपते हैं, जैसे घर के बाहर पानी की टंकियाँ या जानवरों के पीने की हौद, कूलर में इकट्ठा पानी, पानी के ड्रम, पुराने ट्यूब या टायरों में इकट्ठा पानी, गमलों में इकट्ठा पानी, फूटे मटके में इकट्ठा पानी आदि। इसके विपरीत मलेरिया का मच्छर गंदे पानी में पनपता है। इन्हीं मच्छरों से चिकनगुनिया भी फैलता है, जो हम गत वर्षों में देख चुके हैं।
लक्षण
साधारणतः डेंगू की शुर्आित १ से ५ दिनों तक तेज बुखार व ठंड के साथ होती है। अन्य लक्षण जैसे सिरदर्द, कमर व जोड़ों में दर्द, थकावट व कमजोरी, हल्की खाँसी व गले में खराश, उल्टी व शरीर पर लाल-लाल दाने भी दिखाई देते हैं। शरीर पर दाने इस बुखार में दो बार भी दिखाई दे सकते हैं। पहली बार शुरू के दो-तीन दिनों में और दूसरी बार छठे या सातवें दिन। इस बुखार का मरीज करीब १५ दिनों में पूरी तरह ठीक होता है। यह बुखार बच्चों व बड़ी आयु के लोगों में यादा खतरनाक होता है।